In case you are not yet blessed to read his work, here is one of his finest ----
अब तुम आगोश-ऐ-तसव्वुर में भी आया न करो
मुझ से बिखरे हुए गेसू नही देखे जाते
सुर्ख आंखों की क़सम कांपती पलकों की क़सम
थरथराते हुए आंसू नहीं देखे जाते
अब तुम आगोश-ऐ-तसव्वुर में भी आया न करो
छूट जाने दो जो दामन-ऐ-वफ़ा छूट गया
क्यूँ ये लगाजीदा खरामी ये पशेमान नज़री
तुम ने तोडा नहीं रिश्ता-ऐ-दिल टूट गया
अब तुम आगोश-ऐ-तसव्वुर में भी आया न करो
मेरी आहों से ये रुखसार न कुमला जाएँ
ढूँदती होगी तुम्हें रस में नहाई हुई रात
जाओ कलियाँ न कहीं सेज की मुरझा जाएँ
अब तुम आगोश-ऐ-तसव्वुर में भी आया न करो
मैं इस उजडे हुए पहलू में बिठा लूँ न कहीं
लब-ऐ-शीरीं का नमक आरिज़-ऐ-नमकीन की मिठास
अपने तरसे हुए होंठों में चुरा लूँ न कहीं
-- Kaifi Azmi
Wednesday, August 27, 2008
Kaifi Azmi
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