बहुत हसरत से कहा मैंने, तुमसे मोहब्बत है मुझे |
दिल-ऐ-नादाँ इतनी ज़ोर से धड़का, मैं जबाब सुन न सका ||
कहने को तो बहुत कुछ कहा मैंने आंखों से |
वही धड़कन-ऐ-दिल हमारी आंखों मैं पढ़ न सका ||
दास्ताँ-ऐ-ज़िन्दगी सुन कर मेरी, नम आंखों से कहा खुदा ने |
मैं यह रिश्ता बनाना चाहता था, पर बना न सका ||
उसके चेहरे पर भी शायद, प्यार बहुत था मेरे लिए |
पर वोह कुछ ऐसी आयेते थी, जो मैं पढ़ न सका ||
वो समझ भी जाता जो दर्द देख लेता मेरा |
पर दर्द-ऐ-दिल दिल मैं रहा, बहार आ न सका ||
दोष न देना उसको, मेरे ही सर है मेरा कत्ल-ऐ-इल्जाम |
ज़िन्दगी तो बहुत लम्बी थी मेरी, मैं पूरी जी न सका ||
मस्जिद मैं बैठा था लेकर जाम, साकी के आशियाने मैं |
रोकने आया मुझे खुदा, मैं पहचान न सका ||
बहुत हसरत से कहा मैंने, तुमसे मोहब्बत है मुझे |
दिल-ऐ-नादाँ इतनी ज़ोर से धड़का, मैं जबाब सुन न सका ||
Sunday, December 21, 2008
बहुत हसरत से कहा मैंने
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