जाम भर दिया आंसूओ से, जिस दास्ताँ पे साकी ने |
उसे करते हुए तेरी आँख से, एक मोती भी न गिरा ||
कहते है मिल जाता है सुकू दमन-ऐ-यार मैं |
कुछ नींद मुझे भी ऐसी आए, की जागने न पाऊं ||
सब बेखबर है कि यह शाम किधर से आई है |
एक झोंका जो छू ले तो उसके साथ हो जाऊं ||
सुनते है सदा आपकी रोज़ खामोश खवाबो में |
पर मेरी आवाज़ तुम तक पहुचे वो फिजा कहाँ है ?
मिलेंगे राह-ऐ-ज़िन्दगी में बहुत तुम पर मरने वाले |
लेकिन तेरे चेहरे अमें खुदा न किसी ने देखा होगा ||
चले कुछ सिलसिला फिर जिन्दगी-ये-यार-ऐ-सितम का |
इस जिक्र में सही, तेरे लब पर मेरा नाम तो आए ||
मैं तनहा धूप में खड़ा था, सायादार दरख्त की छाओं में |
तू आया तो यूँ लगा की पुरबाई आ गई हो जैसे ||
जो काट रहा है मेरे जहैन् को धीरे धीरे रोजाना |
वो खंज़र तेरी तीखी सवालिया निगाहो का है ||
Tuesday, December 23, 2008
random
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